
चित्तौड़गढ़. 493 साल बाद आज चित्तौड़गढ़ दुर्ग राजतिलक का साक्षी बना हैं। उदयपुर के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और पूर्व सांसद महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद अब उनके बेटे विश्वराज सिंह मेवाड़ को वंश परंपरा के अनुसार राजगद्दी पर बिठाने का दस्तूर कार्यक्रम चित्तौड़ दुर्ग स्थित फतह प्रकाश में आयोजित हुआ.


कार्यक्रम में देश भर से कई लोगों ने शिरकत की। मेवाड़ की प्राचीन राजधानी रहा चित्तौड़ दुर्ग पर महाराणा विक्रमादित्य का 1531 ईस्वी में राजतिलक ही अंतिम बार का राजतिलक हुआ था. इसके बाद मेवाड़ राजवंश के 77वीं पीढ़ी के उत्तराधिकारी विश्वराज सिंह महाराणा की उपाधि चित्तौड़ दुर्ग पर धारण की. 493 वर्षों के बाद मेवाड़ राजघराने की 77वीं पीढ़ी के विश्व राज सिंह मेवाड़ के राजतिलक का चित्तौड़ दुर्ग साक्षी बना. दुर्ग के सभी सातों दरवाजों पर आंगतुकों का ढ़ोल-नगाड़ों से स्वागत किया गया. चित्तौड़ दुर्ग पर आयोजित इस कार्यक्रम में देशभर के पूर्व राजघरानों के सदस्य, रिश्तेदार, गणमान्य नागरिकों के अलावा आमजन सहित बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए. मेवाड़ के महाराणा की गद्दी पर बैठने के दस्तुर के लिए राजतिलक का परंपरागत उत्सव चित्तौड़ दुर्ग के फतह प्रकाश महल में आयोजित किया गया. विधि विधान से कार्यक्रम का आयोजन हुआ. विश्वराज सिंह ने हवन यज्ञ में पूर्णाहुति दी और रस्म का आयोजन शुरू किया गया। राजतिलक परम्परा अनुसार सलूम्बर रावत देवव्रत सिंह राजतिलक की परम्परा निभाई। उसके बाद उमराव, बत्तीसा व अन्य सरदार व सभी समाजों के प्रमुख लोगों ने नजराना किया। इसके बाद कुल देवी बाण माता के परिजनों के सकत दर्शन किए. चित्तौड़गढ़ दुर्ग पर आयोजित कार्यक्रम के बाद रैली के रुप में उदयपुर सिटी पैलेस में धूणी के दर्शन करेंगे। यहां से एकलिंगनाथ मन्दिर पहुंचेंगे। जहां पर भगवान एकलिंगनाथ के आशीर्वाद से पण्डितों द्वारा महाराणा का शोक भंग करवा करके रंग बदला जाता है। जिसके बाद महाराणा सफेद के बजाएं रंग वाली पाग पहन सकें।
Author: डेस्क/माय सर्कल न्यूज
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