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July 1, 2025 8:57 pm

जवराबीज के दिन सामाजिक एकता प्रदर्शित कर खेलते होली


रिपोर्ट – भगवान लाल बिलवाल
गंगरार, होली का त्योहार रंगो का त्योहार हैं। जिस पर हर एक दूसरा रंगो में गुल मिल कर आपसी वेमन्स को भुला कर रंगो में घुल जाता हैं। वही गंगरार में उससे भी अलग तरीके से खेली जाने वाली होली नया आयाम स्थापित करती हैं। गंगरार उपखण्ड मुख्यालय पर पुर्बिया गालव समाज द्वारा प्रति वर्ष धुलण्डी के दूसरे दिन ज्वरा बीज पर सामुहिक रूप से होली खेली जाती हैं। समाज के प्रत्येक परिवार के सदस्य होली खेलने के लिये मन्दिर प्रांगण पर एकत्रित होते हैं। वही से चंग की थाप पर लोकगीत गाते हुए पुर्बिया समाज के विभिन्न गौत्रा के मन्दिरों पर जाते हैं तथा सामूहिक रूप से धोक लगाते हैं। वही वर्ष भर में समाज में हुए शोक गमी वाले परिवार के घर पर ढोल लेकर जाते हैं तथा उन्हे सामुहिक रूप से होली खेलने के लिये आमंत्रित कर उन्हे भी साथ में लेते हैं।
चंग की थाप पर वृद्धजनों के साथ साथ युवाओं महिलाओं का भी उत्साह देखते ही बनता हैं। लोकगीतो की बहार में समाजजन नाचते गाते चलते हैं। समाज के सदस्यों को रंग गुलाल आदि लगा कर होली खेलते हैं। वही नगर के विभिन्न मार्गो से होते हुए सारणेश्वर महादेव मन्दिर प्रांगण पहूॅचते हैं। वही पर स्नान आदि कर नये कपड़े पहन कर सारणेश्वर महादेव के दर्शन करते हैं।
दर्शनों के बाद ढोल की थाप पर समाजजनों द्वारा मन्दिर प्रांगण में ही नृत्य किया जाता हैं। बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि भस्मासुर को मारने के लिये विष्णु भगवान द्वारा मोहनी बनकर जो नृत्य किया गया था। उसी अनुरूप समाजजनों द्वारा नृत्य किया जाता हैं। जो कि आकर्षण का केन्द्र बना रहता हैं। वही पूर्बिया गालव समाज एक साथ हो पुनः कस्बे में पहूॅचते हैं। वही परम्परा के अनुसार होलिका दहन स्थल पर लोकगीतों के साथ ज्वरा को कुटते हैं।
पुर्बिया समाज द्वारा अपने ही समाजजनों को होली खेलाई जाती हैं। उक्त गेर के दौरान अन्य समाज को होली खेलाना व शामील करना वर्जित रहता हैं।

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